बिना चन्दा रे बिना भान
साखी
1.जल में बसे कामोदिनी ,चन्दा बसे आकाश ।
जो जाके हिरदे बसे, बो वाही के पास।।
2.बिन पावन का पंथ है बिन बस्ती का देश
बिना पिंड का पुरुष है,कहें कबीर संदेश ।।
भजन
टेक- बिना चन्दा रे बिना भान, सूरज बिना होया उजियारा रे
पर लोगा मत जाय ,परखले यही उनियारो है।
1.हेली म्हारी ,गूंगो गावे है राग ,बेरो अब सुनवा लागों रे,
पंगलिया नाचे नाच ,आंधलियो नरखन लागों।।
2.हेली म्हारी ,गगन मंडल के बीच तापे एक जोगी मतवालों है,
नही अगन वां भभूत ,नही कोई तापन वालो है ।।
3.हेली म्हारी ,सुन्न शिखर के बीच ,मच्यो एक झगड़ो भारी रे,
नही कायर को वां, कायर को कई पतियारो है।
4.हेली म्हारी,गावे ग़ुलाबी दास, खुल्या म्हारा हिरदा रा ताला है
बोल्या भावनिनाथ होया म्हारे घट उजियारा है ।।
संछिप्त भावार्थ -इस पद मे भवानीनाथ जी महाराज उस उनियारो की जो कि हर पल सबके सामने मौजूद है, इसे बिना चंद ,बिना भानु के देख जा सकता है।इसकी अनुभूति होने पर नेत्रहीन ,बहरा ,लूला -लंगड़ा हर प्रकार की गतिविधि करता है ।वही सूरा जो गगन के रणनछेत्र में लड़कर बिना अग्नि के भभूत के तापता हैं।
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