' जैठ मास गरमी को महीनो '
साखी
आया बबूला प्रेम का , तिनका उड़ा आकाश ।
तिनका तिनके में मिला , तिनका तिनके पास ।।1 ।।
सागर उमड़ा प्रेम का , खेवटिया कोई एक ।
सब प्रेमी मिल बूढ़ते , ये नहीं होती टेक।।2 ।।
भक्ति भाव भादौ नदी , सबै चली भर्राय ।
सरिता सोई जानिए , जो जेठ मास ठहराय।।3 ।।
भजन
जेठ मास गरमी को मइनो प्रेम प्यास लगि जावे।।टेक ।।
1.- जेठ मास गरमी को मड़नो प्रेम प्यास लगि जावे ,
प्रेम पियास लग जावे , गुरुजी म्हाने याद तमारी आवे ॥
याद तमारी सतावे गुरुजी , म्हाने ओलू आपकी आवे ..
2. आसाड़ मईना की आसा जो लागी इंदर चढ़ि घर आवे ,
सद्गुरू म्हारा समंद समाना , धरती धाप घर गावे ॥
गुरुजी म्हाने याद आपकी आवे
3. सावन में साहब घर आवे , सखियाँ मंगल गावे ,
पाँच सखि मिल मंगल गावे , पिया मगन होई जावे ॥
गुरुजी म्हाने याद आपकी आवे .
4. भादवा भक्ति को मइनो , गुरू बिना जीव दुख पावे ,
कहत कबीर सुनो भई साधो , भव से पार लगावे ॥
गुरुजी म्हाने याद आपकी आवे .
मालवी शब्द
मइनों - माह
ओलू - पाद , स्मृति आना
सरिता - नदी
इंदर - वर्षा ऋतु का आगमन
पाप- भूख प्यास का मिटना , पूर्ण होना
संक्षिप्त भावार्थ - इसमें कबीर साहब चौमासे के जरिये इंसान में गुरु के प्रति अच्छे काम के प्रति अच्छी सोच कब पैदा हो जैसे जैठ के माहमें भयंकर गर्मी होती है । और यदि हमें प्यास लगी हो तो अंतर में कैसी चाहत , तड़फ , लगाव या प्रेम पानी ( आब ) से होगा तब प्रकृति द्वारा बादलों का जमावड़ा गर्जना वधनघोर वर्षा होना ताकि धरती की प्यास मिटकर पशु - पक्षी या जीव मात्र मंगल आनंद को पाते हैं । जो बाहरी भी है व अन्तर को शीतलता भी है । ऐसी गुरु के प्रति शब्द या बिजली की चमक ( प्रकाश ) के प्रति हो ?
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