' मत कर मान गुमान '
साखी
1 . पानी केरा बुदबुदा , अस मानुष की जात ।
देखत ही छुप जाएगा , ज्यों तारा परभात ॥
2 .माया तजि तो क्या भया , मान तजा नहीं जाय ।
मान बड़े ऋषि मुनि गले , मान सबन को खाय ॥
भजन
मतकर मान गुमान गुलाबी रंग उड़ जाएगा ॥ टेक ॥
1 . यो संसार कागज की पुडिया , बूंद पड़े ने गली जाए ॥
2 . यो संसार झाड़ और झांकर , आग लगे ने जल जाएगा ॥
3 . यो संसार बोरवाली झाड़ी , उलझ पुलझ मरि जायगो ॥
4. यो संसार हाट वालो मेलो सोदो करिने घर जायगो मूरख मूल गँवाय ॥
5 . ये संसार कांच वाली चूड़ियाँ , लागे टकोरो झड़ जाए ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो , थारी करनी को साथी कोई नाय ॥
मालवी शब्द - सोदो - खरीदारी , खास। गुमान - धमण्ड , अभिमान । गलीजाय - पिघलना। टकोरो - थक्का , चोट । धारी - तुम्हारी आपकी। झड़ - गिरना , टूटना। झाड- वृक्ष। झांकर - सुखे पेड़ की लकड़ियाँ। उलझ - पुलझ - अटकना , उलझना , फसना। हाट - बाजार , मेलो-भीड़। झड़ना - गिरना या टूटकर अलग होना।
संक्षिप्त भावार्थ - इस पद में कबीर साहब सचेत करते हैं कि इस भौतिक ऐश्वर्यता या रंगीनियों पर मत घमण्ड कर यह रंग पता नहीं कब उड़ जाएगा । जैसे कागज की पूड़िया , कांच की चूड़ियाँ , बोर वाली झाड़ी जिसमें हर व्यक्ति कहीं न कहीं उलझा ही जाता है । इसलिए सचेत होकर सच्चा सौदा कर ले व अपनी मूल पूंजी मत गंवा ये तभी संभव होगा जब विद्यापक जी अपनी गाड़ी में बैठकर सच्ची करनी का फल - फलीभूत होता है।
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