सकल हंस में राम विराजे
साखी
1- राम नाम की लूट में , सकल रहा भपूर ।
जो जाने ते निकट है , अनजाने ते दूर ।।
2- कबीर बहुत भटकिया , मनले विषय विराम ।
ढूँढत - ढूँढत जग फिरा , तिलके ओटे राम ।।
3- रग - रग में बोले राम जी , रोम - रोम रंकार ।
सहजे ही धुन होत है , सोई सुमिरण सार।।
भजन
टेक- सकल हंस में राम विराजे , राम बिना कोई धाम नहीं ।
सब ब्रह्माण्ड में जोत का वासा , राम को सुमरू दूजा नहीं।।
1- तीन गुण पर तेज हमारा , पांच तत्व पर जोत जले
जिनका उजाला चौदह लोक में , सूरत डोर आकास चढ़े ।
सकल हंस में राम विराजे , राम बिना कोई धाम नहीं ।
सब ब्रह्माण्ड में जोत का वासा , राम को सुमरू दूजा नहीं।।
2 . नाभि कमल से परख लेना , हिरदे कमल बिच फिरे मणी
अनहद बाजा बाजे शहर में , ब्रह्माण्ड पर आवाज हुई ।
सकल हंस में राम विराजे , राम बिना कोई धाम नहीं ।
सब ब्रह्माण्ड में जोत का वासा , राम को सुमरू दूजा नहीं।।
3 . हीरा मोती लाल जवारत , प्रेम पदारथ परखों यहीं
साँचा मोती सुमर लेना , राम धणी से म्हारी डोर लगी ॥
सकल हंस में राम विराजे , राम बिना कोई धाम नहीं ।
सब ब्रह्माण्ड में जोत का वासा , राम को सुमरू दूजा नहीं।।
4 . गुरू जन होय तो हेरी लो घट में , बाहर शहर में भटको मति
गुरू प्रताप नानक सा का वरणे , भीतर बोले कोई दूजो नहीं ।
सकल हंस में राम विराजे , राम बिना कोई धाम नहीं ।
सब ब्रह्माण्ड में जोत का वासा , राम को सुमरू दूजा नहीं।।
मालवी शब्द
सुमरा - याद करना , स्मरण करना |
डोर - लगन , श्रद्धा
हेरीलो - देखना
संक्षिप्त भावार्थ - इस पद में गुरुनानक साहब संकेत करते हैं कि जीव चराचर में वह राम मौजूद हैं उसके अलावा दूसरा कोई धाम ( स्थान ) नहीं है , पर उसकी परख पांच तत्व व तीन गुण से ऊपर उठकर मन को उस नाद अनहद से जोड़ने से होगी जो अखंडित है निर्गुण निर्विकार है इस हीरे लाल जवाहरथ की खोज बाहर नहीं घर में ही संभव है जो सच्चा है ।
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