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मनक जमारा को यो है मोड़छो भजन लिरिक्स / manak jamara ko bhajan lyrics

' मनक जमारा को यो है मोड़छो ' 


साखी- मानुष तन यह दुर्लभ है , मिले न दूजी बार । 

पक्का फल जो गिर पड़े , बहुरिन लागे डार ।।1 ।। 


सुमरण ऐसा कीजिए , खरे निशाने चोट । 

सुमरण ऐसा कीजिए , तेरे जीभ हलें न होठ ।।2 ।। 


दया भाव हृदय नहीं , ज्ञान कथे बेहद । 

वो नर नरक में जायेंगे , सुनि - सुनि साखी औसबद ॥3 ॥   


भजन

मनक जमारा को यो है मोड़छो 

बणग्यो चौरासी को लाड़ो , मनारे कर सुमरन धन आड़ो ॥ 


1 .धरम बेल ने युक्ति से सींचो , पाप मूल ने काटो

कट्या बल्या तो और फूटेगा , जड़ा मूल से खोदो ॥ 


2 . लेता - देता टांग पसारता , कंई भर लई जायगा गाड़ो

अंत समय में चल्यो जाएगा , जैसा दशेरा को पाडो ॥ 


3 . घर की तिरिया से राजी - राजी बोले , मात पिता से बोले आड़ो

घर की तिरिया और मिलेगा , मात पिता को कंई सारो ॥ 


4 . सात सुन्न पर महासुन्न है , वहाँ साहब म्हारो ठाडो

कहें कबीर सुणो भई साधौ , धर्म चलेगा , अगाड़ो ॥ 


संक्षिप्त भावार्थ - इस पद में साहब कबीर कहते हैं कि धरम अर्थात् धारणा ही आगे चलेगी और वह धारणा अच्छी हो । सोच अच्छी हो उसे युक्ति के जरिये स्थापित करें व अंतर के कलुषित विचारों का जड़ मूल से खोदकर इस काया रूपी खेत से निकालकर बाहर कर दें और यही धर्म तेरे संग चलेगा ।


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