' ज्ञान की जड़िया '
साखी - साखी आँखी ज्ञान की , समझ देखी मन माही ।
बिन साखी संसार का , झगड़ा छूटत नाहीं ॥
भजन - ज्ञान की जड़ियाँ दई मेरे सतगुरू ने ज्ञान की जड़ियाँ दई ।
वा जड़ियाँ तो हमने लागे प्यारी , अमृत रस से भरी॥
हो गुराजी ने दिनी दिनी ज्ञान की जड़ी ॥ टेका
1 . काया नगर माही घर एक बंगलो , ता बिच गुपत धरी ॥
वा जड़ियाँ तो हमने लागे प्यारी , अमृत रस से भरी॥
हो गुराजी ने दिनी दिनी ज्ञान की जड़ी ॥ ज्ञान जड़िया ..
2 . पाँच नाग और पच्चीस नागिनी , सूंघत तुरत मरी ॥
वा जड़ियाँ तो हमने लागे प्यारी , अमृत रस से भरी॥
हो गुराजी ने दिनी दिनी ज्ञान की जड़ी ॥ ज्ञान जड़िया . ..
3 . इणी काली ने भाई सब जग खाया , सतगुरू देख डरी ॥
वा जड़ियाँ तो हमने लागे प्यारी , अमृत रस से भरी॥
हो गुराजी ने दिनी दिनी ज्ञान की जड़ी ॥ ज्ञान जड़िया ..
4 . कहै कबीर सा सुनो भई साधौ , ले परिवार तरी ॥
वा जड़ियाँ तो हमने लागे प्यारी , अमृत रस से भरी॥
हो गुराजी ने दिनी दिनी ज्ञान की जड़ी ॥ ज्ञान जड़िया ...
संक्षिप्त भावार्थ - सद्गुरु कबीर कहते हैं ये सद्गुरु ऐसी नाम की , ज्ञान की , परख पारख की , समझ की , अमृत रूपी जड़ी देते हैं जिसके पीने से इंसान के अन्तर के पंच विषय पच्चीस प्रकृति रूपी नागिनी सभी इन जड़ी को सुंघकर सुरत शांत हुई । अत : कबीर कहा हैं कि वह राम तो रग रग में है और इसी शरीर या काया में वह राम नाम सतनाम , गुरुनाम रूपी जड़ी मौजूद है ।
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