भजन करले बीती जाय घड़ी
साखी
1- भक्ति भेष बहु अन्तरा , जैसे धरनी अकास
भक्ति लियो गुरू चरण में , भेष जगत की आस ।।
2- भक्ति बीज विनसे नहीं , जो जुग जाई अनंत ।
ऊँच नीच घर अवतरे , रहे संत का संत।।.
भजन
टेक- भजन करले बीती जाय घड़ी , तेरी नैया भंवर में पड़ी ।
1 . गर्भवास में भक्ति कबूली , रक्षा आन करी
भजन तुम्हारा करूँगा मै साहब , पक्का कौल करी ॥
भजन करले बीती जाय घड़ी , तेरी नैया भंवर में पड़ी ।
2 .वहाँ से आया हवा जब लागी , माया अमल करी
दूध पिये मुस्काये गोद में , किलकी कठिन करी ॥
भजन करले बीती जाय घड़ी , तेरी नैया भंवर में पड़ी ।
3 .खावत पिवत ओढ़त गलियन में गुरू चरचा वां बिसरी
ज्वान भयो तरूणी संग लागे , अब कहो कैसी करी ॥
भजन करले बीती जाय घड़ी , तेरी नैया भंवर में पड़ी ।
4 . वृद्धभये तन काँपन लागे , कंचन जात भई
कहे कबीर सुणो भई साधो , बिरथा जनम गई ।
भजन करले बीती जाय घड़ी , तेरी नैया भंवर में पड़ी ।
मालवी शब्द
कोल - वादा
ज्वार - जवानी
तरुणी - स्त्री
संक्षिप्त भावार्थ - इसपद में मानव जीवन की अवस्थाओं का बखान करते हुए कहते हे तूने गर्भावस्था में भक्ति के कौल ( वादा ) को भूलकर भौतिक इन्द्रियमय व्यवहार में डूब गया और भोग विलास में जीवन चला गया ।
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