Header Ads Widget

Ticker

6/recent/ticker-posts

अवसर बार बार नहिं आवै / avsar bar bar nahi aave

भजन 

अवसर बार बार नहिं आवै॥टेक ॥ 

जो चाहो करि लेव भलाई , जन्म जन्म सुख पावै ॥१ ॥

तन मन धन में नहिं कहुँ अपना , छाँड़ि पलक  में जावै ॥२ ॥ 

तन छूटे धन कौन काम के , कृपिन काहे को कहावै ॥३ ॥

सुमिरण भजन करो साहब को , जासे जिव सुख पावै ॥४ ॥

कहहिं कबीर पग धरे पंथ पर , यम के गण न सतावै ॥५ ॥ 


शब्दार्थ - कृपिन = कृपण , कंजूस । यम वासना । 

भावार्थ - कल्याण - साधना के लिए सुनहरा समय बारंबार नहीं मिलता । यह जवानी , यह स्वास्थ्य , यह सत्संग दुर्लभ हैं और तुम्हें मिले हैं । अतएव साधना में इनका उपयोग कर लो । यदि समझ में आये , तो दूसरों की भलाई का काम कर लो । इससे तुम्हें आज तो सुख मिलेगा ही अगले जन्मों में भी सुख मिलेगा । 

शरीर , मन और धन का जहां तक पसारा है , इनमें कुछ भी अपना नहीं है । इनको क्षण - पल में छोड़कर चल देना है । शरीर छूट जाने पर धन किस प्रयोजन का होगा , फिर जीते जी कंजूस क्यों बनते हो ! सद्गुरु का स्मरण करो , उनकी सेवा करो और उनसे प्रेरणा लेकर सन्मार्ग पर चलो । इसी से जीव को सच्चा सुख मिलेगा । 

कबीर साहेब कहते हैं कि जो सद्गुरु से आत्मबोध पाकर सुपथ पर पैर रखता है उसे वासनाएं संताप नहीं देतीं ; क्योंकि वह वासना विजयी होता है । 

विशेष- सद्गुरु ही जीव को सुपथ बताने वाला साहेब है , स्वामी है । उनकी शरण से ही जीव का उद्धार है । अंतत : जीव ही शिव है । सारे ज्ञान - विज्ञान का साहेब जीव ही है । सद्गुरु से स्वरूपबोध पाकर जीव अपने में कृतकृत्य हो जाता है ।

आपको भजन व अर्थ में कुछ त्रुटि नजर आती है तो कमेंट करके जरूर बताये और blog को follow  करे , साथ ही  social media पर भी आप भजनो को देख सकते है और पढ़ सकते है तो social media पर भी आप हमे follow कर सकते है   -   


YOU TUBE     -     भजन वीडियो

FACEBOOK    -     FOLLOW

INSTAGRAM   -    FOLLOW

TELEGRAM    -    JOIN

TWITTER        -    FOLLOW

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ