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अवधू अंधाधुंध अंधियारा लिरिक्स / avdhu andhadhundh andhiyare lyrics

भजन


टेक- अवधू अंधाधुंध अंधियारा ।।


1- या घट अंतर बाग बगीचा ।

याही में सिर्जनहारा ।। 1 ।।

अवधू अंधाधुंध अंधियारा ।।


2-  या घट अंतर सात समुंदर ।  

याही में नौ लख तारा ॥ २ ॥ 

अवधू अंधाधुंध अंधियारा ।।


3- या घट अंतर हीरा मोती

याही में परखनहारा ॥ ३ ॥ 

अवधू अंधाधुंध अंधियारा ।।


4- या घट अंतर अनहद गरजे

याही में उठत फुहारा ॥ ४ ॥ 

अवधू अंधाधुंध अंधियारा ।।


5- कहत कबीर सुनो भाई साधो

याही में गुरु हमारा ॥ ५ ॥ 

अवधू अंधाधुंध अंधियारा ।।


शब्दार्थ- अवधू- त्यागी , विरक्त अंधाधुंध घना अंधियारा । अनहद अनाहत नाद सच्चा ज्ञानानुभव । 

भावार्थ- हे त्यागियो ! जीवन का परम लक्ष्य क्या है , इसके विषय में लोगों के मन में घना अंधियारा है । वे अपना लक्ष्य निज अपरोक्ष आत्मस्वरूप न समझकर उसे बाहर मानते और परोक्ष में भटकते हैं । परंतु यह पक्का समझ लो कि इसी शरीर के भीतर अपनी बनायी मानसिक सृष्टि रूपी बाग - बगीचे हैं और इसी शरीर के भीतर उसका सिर्जनहार जीवात्मा है । इसी शरीर के भीतर मानो सात समुद्र और नौ लाख तारे हैं । अर्थात यदि कोई मन , इंद्रिय और काया को शोध ले , तो वह अपने आप में महा ऐश्वर्यवान है । इसी शरीर के भीतर हीरे - मोती हैं और उन्हें परखने वाला पारखी चेतन जीव भी इसी में है । अर्थात इसी शरीर में सद्गुणों की खान है और उसको समझकर उपयोग करने वाला जीव है । इसी शरीर में आत्मानुभव रूपी अनाहतनाद की गर्जना होती है और इसी में निश्चितता के आनंद - फुहारे उठते हैं । कबीर साहेब कहते हैं कि हे संतो ! सुनो , इसी काया में हमारा गुरु रहता है जिसका नाम है विवेक । 

विशेष- लोग मानते हैं कि जिसको पाने से परमानंद एवं परमशांति मिलती है , वह परमात्मा , मोक्ष एवं परमधाम कहीं अलग है । कबीर साहेब कहते हैं कि वह तुम्हारा आत्मस्वरूप है । सांसारिक सारी इच्छाओं को छोड़कर जो अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है , वह परम शांति की प्राप्ति इसी शरीर में रहते कर लेता है । इसी की महिमा में सद्गुरु ने इस शब्द बताया है कि उसके लिए इस शरीर में ही बाग , बगीचे , सिर्जनहार , सात समुद्र , नौ लाख तारे , हीरे , मोती , उनका परखने वाला , अनाहतनाद की गर्जना , फौव्वारे तथा गुरु रहते हैं । जो संसार से निष्काम होकर आत्म - लीन हो गया वह महा सफल , ऐश्वर्यवान तथा महिमापूर्ण है ।.

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