भजन
टेक- अस लोगन को बहि जाने दे ॥
1- हंस हंस मिलि चलो सरोवर
बकुलन मछली खाने दे ॥ १ ॥
अस लोगन को बहि जाने दे ॥
2- हंस गयन्द चलो मद माते
कूकर लोग भुकाने दे ॥२ ॥
अस लोगन को बहि जाने दे ॥
3- हंस हंस मिलि चलो अमरपुर
कागा आमिष खाने दे ॥३ ॥
अस लोगन को बहि जाने दे ॥
4- कहैं कबीर सुनो भाई साधो
सत्य शब्द में काने दे ॥ ४ ॥
अस लोगन को बहि जाने दे ॥
शब्दार्थ- गयंद हाथी । अमरपुर = आत्मस्थिति ।
भावार्थ — जो सांसारिक प्राणी पदार्थों के मद में उन्मत्त हैं , उन्हें मन - इंद्रियों की धारा में बहने दो । उन पर तुम्हारा उपदेश नहीं लगेगा । तुम चुपचाप अपना कल्याण करो । हंस - हंस मिलकर मानसरोवर में चलो जहां मोती चुगना होता है । बगुलों को मछली खाने दो । विवेकवान ही सत्संग में आत्मा - अनात्मा का विवेककर आत्मरमण करते हैं । विवेकहीन तथा प्रमादी लोग विषयों में ही उन्मत्त रहते हैं । हाथी अपनी मस्त चाल में चलता है । उसे देखकर कुत्ते भूंकते रहते हैं । परंतु हाथी उनकी तरफ अपनी दृष्टि भी नहीं फेरता । वह निश्चित अपनी चाल में चला जाता है । इसी तरह अविवेकियों के बकबक करने पर भी विवेकवान उनकी तरफ नजर नहीं । फेरते , किन्तु अपनी पवित्र रहनी में चलते रहते हैं । सद्गुरु सुझाव देते हैं कि विवेकीजन आपस में मिलकर सत्संग करें और स्वरूपस्थिति रूपी अमरधाम में सदा के लिए विश्राम पावें । वे कौए स्वभाव वाले व्यक्तियों के संबंध में न उलझें । कौओं का अशुद्ध भोजन है , उन्हें कौन शुद्ध कर पायेगा । जो मनुष्य स्वभाव के ही गंदे हैं और जिन्हें अपनी गंदगी में हठता है , उन्हें सुधारने की बात ही निरर्थक है । कबीर साहेब कहते हैं कि हे संतो ! निर्णय वचन सुनो और उसके अनुसार आचरण करो ।
विशेष- कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सुधर नहीं सकते । विवेकवान उनको सुधारने के चक्कर में नहीं पड़ते । विवादी और जानबूझकर विपथ में चलने वाले व्यक्ति की उपेक्षा कर देना ही शांति का रास्ता है । हमें अपना कल्याण करना है और जो रुचि ले उसको सत्सुझाव दे देना है ।
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