वहां मेरा हंस रेवाया
साखी
टेक- नाभि कमल से उठता , शून्य में जाए समाये ।
हाथ पाँव बांके नहीं , सूरत से पकड़ा जाए ।
2- बिन पावन का पंथ है , मंज शहर अस्थान ।
विकट घाट औघट घणा , पहुंचे संत सुजान ।
भजन
टेक- धरमी वहां मेरा हंस रेवाया ।
वहाँ नहीं चन्द भाण नहीं रजनी नहीं धूप नहीं छाया॥
1 . पग बिन पन्थ मार्ग बिना मारग पर बिन हंस उड़ाया ।
चालत खोज पड़े नहीं थांका बेगम जाय समाया ।
धरमी वहां मेरा हंस रेवाया ।
वहाँ नहीं चन्द भाण नहीं रजनी नहीं धूप नहीं छाया॥
2 . जल बिन पाल पाल बिन सरवर बिन रहणी रहवाया ।
बिना चोच हंस चूण चुगत है सीप बिना मोती पाया ॥
धरमी वहां मेरा हंस रेवाया ।
वहाँ नहीं चन्द भाण नहीं रजनी नहीं धूप नहीं छाया॥
3. है वो अथा थाग नहीं वांका चर अचर में छाया ।
जल थल वेद प्रगट कर केवू गुरु मिलिया गम पाया ।
धरमी वहां मेरा हंस रेवाया ।
वहाँ नहीं चन्द भाण नहीं रजनी नहीं धूप नहीं छाया॥
4 . किसको केवू कुणी पत माने सत्गुरु मोय लखाया ।
भूला जीव भटक मर जावे दास कबीर फरमाया ।
धरमी वहां मेरा हंस रेवाया ।
वहाँ नहीं चन्द भाण नहीं रजनी नहीं धूप नहीं छाया॥
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