तू क्या जाने पीड़ पराई शबद की
साखी
1- शब्द बराबर धन नहीं जो कोई बोले बोल ।
हीरा तो दामों मिले शब्द का मोलन तोल ।
भजन
टेक- तू क्या जाने पीड़ पराई शबद ( भजन )
की लागी होय सो जान जोरे ( मेरे ) भाई
भजन की लागी लागी होय सो जानजो रे भाई॥
1 . गैला में यो घायल घूमें रे , घाव नज़र नहीं आई
ज्ञान कामठा पैरी बैठा , भजनों की भीड़ रलाई ॥
भजन की लागी लागी होय सो जानजो रे भाई॥
तू क्या जाने पीड़ पराई शबद ( भजन )
की लागी होय सो जान जोरे ( मेरे ) भाई ।।
2 . अंकाने लागी बंका ने लागी , लागी सदन कसाई
बलख बुखारा ने ऐसी लागी , छोड़ दीनी बादशाही ।
भजन की लागी लागी होय सो जानजो रे भाई॥
तू क्या जाने पीड़ पराई शबद ( भजन )
की लागी होय सो जान जोरे ( मेरे ) भाई ।।
3 . ध्रुव ने लागी प्रहलाद ने लागी , लागी मीरा बाई
गोपीचंद भरथरी ने ऐसी लागी , अंग में भभूति रमाई ।
भजन की लागी लागी होय सो जानजो रे भाई॥
तू क्या जाने पीड़ पराई शबद ( भजन )
की लागी होय सो जान जोरे ( मेरे ) भाई ।।
4 . पांच ने मार पच्चीस बस करले , अनघड़ लेवो जगाई
कहें कबीर सुनो भाई साधो , सुन्न में धजा फ़हराई ।
भजन की लागी लागी होय सो जानजो रे भाई॥
तू क्या जाने पीड़ पराई शबद ( भजन )
की लागी होय सो जान जोरे ( मेरे ) भाई ।।
मालवी शब्द
गैला - रास्ता ।
कामठा - कठोर , आवरण
रत्नाई - बहाई , बढ़ाई
रमाई - लगाना , रमाना , खिलाना
संक्षिप्त भावार्थ - कबीर साहब सच्चे संत , महंत , पीर , औलिया का निरुपण करते हैं कि जो दूसरे के दुःख - दर्द , पीड़ा को दूर करे सेवा करें परमार्थ परहित में जीवन को जितना हो सके स्वयं मेहनत कर दूसरों की सेवा जो पीड़ित है , शोषित है करें । इतिहास इस बात का प्रमाण है कि वाल्मिीकि अंका , बंका , सदन , कसाई , गोपीचन्द , भरथरी , भभूति - भस्म , राख ध्रुव , प्रहलाद , इनको शब्दों की चोट लगी व जीवन में पूरी तरह से परिवर्तन हुआ | इसलिए साध्य कहते हैं पांच - पच्चीस को बस कर अनघड़ जो घड़ने में नहीं आता । सर्वव्यापी सर्वमय जुड़ जाएं , मिल जाएँ ।
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