सौदागिर अब क्यों भूल्यो जाए
साखी
1- लकड़ी जल डूबे नहीं कहो कहाँ की प्रीत ।
अपनो सीचो जानि के यही बढ़न की रीति ।।
भजन
टेक- थारो धरम संगाती ले लार
थारो मारग माथे रे लार
सौदागिर अब क्यों भूल्यो जाए रे॥
1. बागां रे बागां लोभी , थें फिरिया रे लोभी
मैं तो फिरी रे थारी लार ।
बांगा रा फुलड़ा थने तोड़िया रे लोभी
म्हाने तो गूंथी रे भरमाल ।
सौदागिर अब क्यों भूल्यो जाए रे॥
2. हाटा रे हाटां लोभी , थै फरया रे लोभी
मैं तो फिरी रे थारी लार ।
सुगरा मानस सौदा करी चल्या रे लोभी
नुगरा तो मूल गंवाए ।
सौदागिर अब क्यों भूल्यो जाए रे॥
3. खूब न्हायो रे गंगा , गोमती रे लोभी
खूब चढ़यो तू ( गढ़ ) गिरनार ।
मात पिता की सेवा नहीं करिया रे लोभी
तीरथ ऐलिया ( ऐल्या ) जाए ॥
सौदागिर अब क्यों भूल्यो जाए रे॥
4. कहै हो कबीर धरमीदास से रे लोभी
सुन ले रे चित मन लाए ।
गावे बजावे सुने सांभले रे लोभी
हंसा सत्लोक जाए ।।
सौदागिर अब क्यों भूल्यो जाए रे॥
मालवी शब्द
सौदागिर - सोदा करने वाला।
लार - साथ ।
भरमाल - बरमाला ।
ऐल्या - व्यर्थ , बेकार ।
गुंथी - बनान
संक्षिप्त भावार्थ - साहब कबीर चितावनी के माध्यम से कहते हैं कि जो तुने अपने अंतर में धारण कर रखा है वह तो साथ है । अतः हमारी धारणा अच्छी हो , सकारात्मक सेवा की हो जो सच्ची सेवा भक्तिपूजा है । क्योंकि मन रूपी भवर डोलता है व आषा तृष्णा , आसक्ति रूपी अनेक संरचना बनती है इसलिए सच्चा सौदा करले जो दीन - दुखियों की माता - पिता की सेवा है ।
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