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इनका भेद बता मेरे अवधू / inka bhed bata mere avdhu

इनका भेद बता मेरे अवधू 


साखी


1.सब घट मोरा साईंयाँ , सुनी सेजना कोय

 बलिहारी उन घट की , जा घट प्ररगट होय ॥1 ॥ 


भजन


1. इनका भेद बता मेरे अवधूअच्छी करनी कर ले तू

डाली फूल जगत के माही , जा देखूवाँ तू का तू।। टेक


 2. हाथी में हाथी बन बैठों , चींटी में है छोटो तू 

होय महावत ऊपर बैठे , हॉकण वाला तू का तू ।।


3. चोरों के संग चोर बण जावे , डाकू में है भेलो तू 

 चोरी करके तू भग जावे , पकड़ने वाला तू का तू ॥


4. दाता के संग दाता बण जावे भिखारी में भेलो तू 

मंगतो होकर माँगन लागे , देने वाला तू का तू ।। 


5 . नर - नारी में एक विराजे , दो दुनिया में दीसे क्यों 

बालक होकर रोवन लागे , राखण वाला तू का तू ॥


6. जल थल जीव में तू ही बिराजे , जहाँ देखू वहाँ तू का तू 

कहै कबीर सुणो भई साधो , गुरू मिल्या है ज्यूँ का त्यूं ॥ 


 संछिप्त भावार्थ- इस पद में कबीर साहब अच्छी करनी का संकेत करते हैं , अच्छी सोच पर जोर देते हैं । क्योंकि वह रूहानियत की लाली सभी में सर्वागतम स्थिति में मौजूद है जिसमें किसी जाती , धम , सम्प्रदाय , देश - परदेश , लिंग का भेद ना हो । क्योंकि वह चेतन आत्या जल , थल , जीव , जन्तु में समान रूप से व्यास है । इसकी समझ सचे सतगुरु द्वारा ही होगी । 


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