हंस मिल्या से हंस होई रे


साखी

1- हंस काग की परख को सद्गुरु दीनी बताय ।

हंसा तो मोती चुगे , काग नरक पर जाय।।


2- हंसा तू तो सबल था , हल्की तेरी चाल ।

रंग - कुरंगे रंग लिया , बहुत किया लगवाल।।


भजन


टेक- पाँच नाम भवसागर का कहिए

या से मुक्ति न होय रे

यो कुल छोड़ो मिलो सतगुरू से

सहजे मुक्ति होय रे ।

हंसा हंस मिलया से हंस होईरे

जो तू जोड़े बैठे बुगला का

हंस केवेगा न कोई रे

हंसा हंस मिलया से हंस होईरे


1. ई हंसा है क्षीर कूप का

नीर कूप वाँ नाहि रे ।

नीर कूप ममता को पानी

ई तजिया तो हंस होई रे॥

हंसा हंस मिलया से हंस होईरे


2 . दस अवतार षठ दर्शन कहिए

वेद भणेगा नर सोई रे

वरण छत्तीसा शास्त्र गीता

ई तजिया तो हंस होई रे॥

हंसा हंस मिलया से हंस होईरे


3. मदवारे होई ने बैठो मंदिर में

तिरिया ( तिरवा ) की गम नाहीरे

देखन का साधु घणा मठधारी

याको ब्रह्म ठिकाने नाहीरे ॥

हंसा हंस मिलया से हंस होईरे


4. तीन लोक पर बैठो यमराजा

बैठो बाण संजोई रे

समझ विचार चढ्यो है हंस राजा

काल दियो है यो रोई रे ॥

हंसा हंस मिलया से हंस होईरे


5. ई हंसा है अमर लोक का

आवागमन में नाही रे

कहै कबीर सुनो भाई साधौ

सद्गुरु सैण लखाई रे हंसा ॥

हंसा हंस मिलया से हंस होईरे


 मालवी शब्द

इतजिया- इनको छोड़ना  


संक्षिप्त भावार्थ- इस शब्द में कबीर साहब संगति पर जोर देते । हुए अच्छे पुरुषों की सत संगति की संगत से मानव जीवन निश्चित ही परिवर्तन होगा । बाहय आइम्बरव दिखावों को दूर कर समझ - परख व विवेककी तराजु में तोलकर आत्म ब्रह्म का दिग्दर्शन कर आत्मतत्व में स्थिर हो जा ।


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