थारा भरिया समंद माहि हीरा
साखी
1- हीरा हिरदे निबजे नाभि कमल के बीच
जो कबहूँ हीरा लखे कदे ने आवे मीच ॥
2- हीरा साहब नाम है हिरदे भीतर देख।
बाहर भीतर रम रहा ऐसा आप अलेख।।
भजन
टेक- थारा भरिया समंद माहि हीरा
मरजीवाला लाविया
थारा घट माहि ज्ञान का जंजीरा
मालिक सुलझाविया।।
1- यों मन लोभी लालचीरे
यो मन कालू कीर
( भरम ) कुबुद्धि की
जाल चलावे रे हाँ - हाँ ॥
थारा भरिया समंद माहि हीरा
मरजीवाला लाविया.
थारा घट माहि ज्ञान का जंजीरा
मालिक सुलझाविया।।
2- बागा जो बागा कोयल बोले
बन माहि बोले रूड़ा मोर
सावण ( समझ ) वाली
लहरा भी आवे रे हाँ - हाँ ।
थारा भरिया समंद माहि हीरा
मरजीवाला लाविया
थारा घट माहि ज्ञान का जंजीरा
मालिक सुलझाविया।।
3- घाँस - फूस सब जालि गया रे
रईगी साँवन वाली तीज
कोई तो दिन उलट आवे रे हाँ - हाँ ।
थारा भरिया समंद माहि हीरा
मरजीवाला लाविया
थारा घट माहि ज्ञान का जंजीरा
मालिक सुलझाविया।।
4- गोला छुट्या है गुरू ज्ञान का
कायर भाग्यो जाय
सूरमा सम्मुख रहणारे हाँ ॥
थारा भरिया समंद माहि हीरा
मरजीवाला लाविया
थारा घट माहि ज्ञान का जंजीरा
मालिक सुलझाविया।।
5- गुरू रामानंद की फौज मेरे
सन्मुख लड़ेरे कबीर
( भजन ) शबद का बाण चलायारे ।।
थारा भरिया समंद माहि हीरा
मरजीवाला लाविया
थारा घट माहि ज्ञान का जंजीरा
मालिक सुलझाविया।।
मालवी शब्द
समंद - समझ रूपी समुद्र ( ज्ञान )
लाविया - लाना , चुनना ।
मरजीवाला -- जीते जी मरने वाला या मरकर जीने वाला , मेहनती ।
भरम - अज्ञानता ,
दुविधा , नासमझी की
रुड़ा - सुन्दर ,
उलट - फिर से
. संक्षिप्त भावार्थ - इस पद में सदगुरु कबीर सा . मरजीवा बनकर हृदय रूपी समुद्र से नाम रूपी सदभाव रूपी , हीरा चुनने का संदेश करते हैं परन्तु यह तभी संभव है जबकि मन अपनी चंचलता से स्थिर हाकर सुरा बनकर भरम कुमतिव पंच विषयों से पलटे । और ज्ञान का सदराह की ओर अग्रसर हो ताकि भजन रूपीशब्दरूपी बाण की चोट द्वारा अपने जीवन के लक्ष्य को पा सके ।
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