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अब थारो कई पतियारो रे परदेशी / ab tharo kai patiyaro re pardeshi

 ' अब थारो कई पतियारो रे परदेशी '


साखी - 


1- काल चक्र चक्की चले , बहुत दिवस और रात ।

अगुण सगुण दोई पाटला , तामे जीव पिसात ।।


2- इक दिन ऐसा होयगा , कोई किसी का नाय ।

घर की नारी को कहे , तन की नारी जाय।।


भजन 

टेक- अब थारो कई पतियारो रे परदेशी

अरे हाँ दूरा देशी रे हाँ ।


1- मायला ढसी गई भींत , पड़न लागी टाटी

थारी टाटी में , मिली गई माटी रे परदेशी ।


2- मायला जब लग तेल , दिया रे मांही बाती

थारा मंदरिया मेरे होया उजियारो रे परदेशी ।।.


3- मायला खुटि गया तेल , बुझन लागी बाती

थारा मंदरिया में होया , अंधियारो रे परदेशी ।।


4- मायला घाट घड़ी को यो सांटोरे मीठो

यो घाट - घाट रस न्यारे रे परदेशी ।।


5- उठि चल्यो बणियो , सूनी थारी हाटड़ी

वी तो तालो दईग्या ने , कूची लईग्यारे परदेशी ।।


6- कहै कबीर सुणो भई साधो

थारो हंसो अमरापुरी जासी रे परदेशी ॥


मालवी शब्द 

पतियारो- भरोमा , विश्वास । 

धंसी- गिरना , पड़ना , टूटना 

हाटडी - बाजार ( कायारूपी ) 

कूँची - चाबी


. संक्षिप्त भावार्थ - इस चितावनी चलत्वा में साहब संकेत देते हैं कि इस काया रूपी दिये से चेतन रूपी तैल खतम होने पर अल्प समय की रंगीनिया सब यहाँ रह जाएगी । काया या शरीर रूपी हाटडी को संचालित करने वाला चेतन रूपी जीव जो सौदागरी है चला जाएगा जिसके पास चाबी है वह हंस रूपी जीव निकल जाएगा एवं इस मकान से ताला लगाकर कुंजी साथ ले जाएगा । अतः शरीर को चैतन करके नेकी कर प्रेम सदभाव से रहकर अच्छे कार्य कर लें । 


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