' म्हारी सदा राम रस बीनी चादर '
साखी -
1- सतगुरू बड़े सुनार है , परखें वस्तु भण्डार ।
सुरति निरति मिलाय के , मेटि डारे खुटकार।।
2- सतगुरू तो सद्भाव है , जो अस भेद बताय ।
धन - भाग - धन - शिष्य जेहि , जो ऐसी सुधि पाय ॥
भजन -
टेक- म्हारी सदा राम रस बीनी चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।
1- अष्ट कमल दल चरखा चाले , पाँच तत्व गुण तीनी
कर्म की पूणी कांतन बैठी , कुकरी , सुरत महीणी ॥
चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।
म्हारी सदा राम रस बीनी चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।
2- इंगला पिंगला ताना कीनो , सुखमण या भर दीनी
नवदस मास या बीतण लागे , ठीक ठाक कर बीनी ॥
चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।
म्हारी सदा राम रस बीनी चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।.
3- या चादर धोबी के दीनी , शब्द ताल धर दीनी ।
सुरत शिला पर पकड़ पछाटी , इन वद उजली कीनी ॥
चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।
म्हारी सदा राम रस बीनी चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।
4- या चादर रंगरेज के दीनी , भांति - भांति रंग बीनी ।
प्रेम पति का रंग चढ़ाया , पीली पीताम्बर कीनी ।
चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।
म्हारी सदा राम रस बीनी चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।
5- या चादर सुरनर मुनि ओढ़ी , ओढ़ के मेली कीन्हीं
अर्जुन ओढ़ मरम नहीं जाना , मूरख मैली कीनी ॥
चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।
म्हारी सदा राम रस बीनी चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।
6- धूव ओढी प्रहलाद ने ओढ़ी , सुखदेव निर्मल कीनी
साहब कबीर ने जुगत से ओढ़ी , ज्यों की त्यों धर दीनी ॥
चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।
म्हारी सदा राम रस बीनी चादर झीणी रंग झीणी हो जी ।
मालवी शब्द
जुगत - युक्ति ।
महीणी - महीन बहुत बारिक
संक्षिप्त भावार्थ - इस पद में चादर के माध्यम से जो मानव मात्र की एक जैसी पांच तत्व व तीन गुण से मिलकर एक ही ताने - बाने से बनी है जिसको गुरु ने ( शब्द ) धोकर प्रेम का ऐसा पक्का चढ़ाया कि फिर कोई कुकर्म या दुराचरण रूपी दाग न लगे ऐसी युक्ति बताई ताकि जीवन में निर्मलता , कोमलता , सरलता , सहजता आ जाए ।
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