कोई सुनता है गुरु ज्ञानी
साखी
1- पाँच तत्व तीन गुण के , आगे मुक्ति मुकाम ।
जहाँ कबीर सा घर किया , गोरख दत्त ना राम ।।
2- रग - रग में बोले रामजी , रोम - रोम रंरकार ।
सहजे ही धुन होत है , सोई सुमिरण सार ।।
3- सहजे उपजे जो धुनि , जपते - जपते नाम ।
वही अनहद नाद है , हो क्रमश : अभिराम ॥
भजन
टेक - कोई सुनता है गुरू ज्ञानी गगन में आवाज होवे झीणी ॥
1- ओहम् सोहम् बाजा रे बाजे , त्रिकुटी शबद निसाणी ।
ईगला रे पिंगला सुखमण जोवे , श्वेत ध्वजा फहराणी ॥
2- वहाँ से आया नाँद बिन्द से , यहाँ जमावत पाणी ।
सब घट पूरण बोल रहा है , अलख पुरूष निरवाणी ॥
3- वहाँ से आया पट्टा लिखाया , तृष्णा नाही बुझानी ।
अमृत छोड़ विषय रस पीवे , उल्टी फांस फसांणी ॥
4- देखा दिन जितना जग देखा , सहजे अमर निसाणी ।
कहै कबीर सुणो भाई साधौ , अगम निगम की वाणी ॥
मालवी शब्द
तृष्णा - आसक्ति , लगाव
बुझाणी - नष्टकरना , गिरान
साणी - उलझना , समस्याएं
संक्षिप्त भावार्थ - इस भेदवाणी में साहब कबीर ने जो सब घर में पूर्णरूप बोल रहा है प्रवाहित हो रहा है उस नाद की उस अनहद की प्रत्यक्षानुभूति विषय वासना रूपी जहर को छोड़कर सतनाम - सतकाम रूपी अमृत का पान करना पड़ेगा । अच्छी सोच व सुमति के साथ नैकी का जीवन जीना ही सहजता को व्यवहारिकता में उतारना है । कबीर सा . के अनुसार जो स्वयं को सुनता है उस अखण्ड धुन को सुनता है वही सच्चा गुरु ज्ञानी है ।
आपको भजन अच्छा लगा हो या कोई त्रुटि दिखाई देती हो तो कमेंट करके जरूर बताये और blog को follow जरूर करे और आपको लिखित भजन एवं वीडियो social site पर भी मिल जायेंगे तो आप हमें वहाँ भी follow कर सकते है।
YOU TUBE - भजन वीडियो
FACEBOOK - FOLLOW
INSTAGRAM - FOLLOW
TELEGRAM - JOIN
TELEGRAM GROUP - JOIN
TWITTER - FOLLOW
0 टिप्पणियाँ