' हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया '
साखी
1- चलती चाकी देखिके , दिये कबीरा रोय
दो पाटन के बीच में , साबुत बचा न कोय।।
2- आसे पासे जो फिरे निपट पिसावे सोय
लिपट रहो उस कीलसे , ताका विघन न होय।।
भजन
टेक- हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया
चलती बिरिया , चलती बिरिया , हमको ओढ़ावे..
1- प्राण राम जब निकसन लागे
उलट गई दोनों नैन पुतरियाँ ॥
हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया
चलती बिरिया , चलती बिरिया , हमको ओढ़ावे..
2- भीतर से जब बाहर लाये
छूट गए सब महल अटरिया ।।
हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया
चलती बिरिया , चलती बिरिया , हमको ओढ़ावे..
3- चार जने मिले खाट उठैया
रोवत से चले डगर डगरियाँ ।
हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया
चलती बिरिया , चलती बिरिया , हमको ओढ़ावे..
4- कहत कबीर सुणो भाई साधो
संग चलेगी वही सूखी लकरिया ॥
हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया
चलती बिरिया , चलती बिरिया , हमको ओढ़ावे..
. संक्षिप्त भावार्थ- जब काया से प्राण रूपी राम निकल जाते हैं तब काया कहती है - हमको चदरिया ओढ़ाकर चारजनों ने खाट पर रोते - रोते ले चले और महल अटरिया यहीं रह गई । काया के संग लकड़ियां संग चली । इसमें हमारे साथ क्या जायेगा , दर्शाया है ।
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