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रंग कहाँ है मेरे भाई हंसा

 ' रंग कहाँ है मेरे भाई हंसा ' 


साखी - 


1- रंग हि से रंग उपजे सब रंग देखा एक ।

कौन रंग है जीव का , ताका करहू विवेक।।


2- सबरंग पानी से भया , सब रंग पानी के माय ।

कौन रंग है नीर का , सो येहि दवो बताय।।


भजन - 


टेक- रंग कहाँ है मेरे भाई हंसा , रंग कहाँ है मेरे भाई॥


1- सात द्वीप नवखंड के बाहर यहाँ - वहाँ खोज लगाई

वो देश वाको मरम न जाने , जहाँ से या चूनर आई ।

रंग कहाँ है मेरे भाई हंसा , रंग कहाँ है मेरे भाई॥


2- इणी चूनर में दाग बहुत है संत कहे गोहराई

जो यह चूनर जुगत से ओढ़े , काल निकट नहीं आई ।

रंग कहाँ है मेरे भाई हंसा , रंग कहाँ है मेरे भाई॥


3- प्रेम नगर की गैल कठिन है , वहाँ कोई जाने न पाई

चाँद सूरज जहाँ पवन न पानी , पतियाँ को ले जाई ।

रंग कहाँ है मेरे भाई हंसा , रंग कहाँ है मेरे भाई॥


4- सोहंकार से काया सिरजी , जामे रंग समाई

कहै कबीर सुणो भई साधो , बिरले गुरू मुख पाई ॥

रंग कहाँ है मेरे भाई हंसा , रंग कहाँ है मेरे भाई॥


मालवी शब्द 

चूनर - ओढ़ना ( शरीर पर ) ,

सिरजी - सृजन , बनी

विरले- कोई कोई ( बहुत कम ) 

बखतर - तलवार का ऊपरी कवर 

गोहराई - कहना , दर्शाना 

जुगत - हिफाजत ( युक्तिसे ) 

मैल - रास्ता | 


संक्षिप्त भावार्थ- इस पद में साहेब उस रंग का संदेश देते हैं जो इस शरीर में सृजन के साथ ही मिला हुआ है । परन्तु उस राह पर कोई बिरला ही चल पाता है जो अपने भौतिक व अध्यात्मिक घर के कचरे को जो हमने भर रखा है जला दे । वही बेदाग व्यक्तित्व प्रेम की राह पर चलकर मानव मात्र के बीच की दूरियों को दूर करेगा । जो उस प्रेम , सदभावव सदकर्म के रंग को हर प्राणी मात्र में प्रत्यानुभूति करेगा ।


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