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एकला मत छोड़ जो बणजारा रे / ekla mat chhodajo banjara re

  ' एकला मत छोड़ जो बणजारा रे ' 


साखी 


1 - हंस काग की परख को , सतगुरू दई है बताय । 

हंसा तो मोती चुगे , काग नरक पर जाय॥


2 - परदेशाँ खोजन गया , घर हीरा की खान ।

काँच मणि का पारखी , क्यों पावे पहचान ॥


3 - हीरा पड़ा बाजार में , रहा छार लिपटाय ।

कितने ही मूरख पचि गए , कोई बिरला लेगा उठाय ॥ 


भजन


टेक - एकला मत छोड़ जो , बणजारा रे ।

परदेश का है मामला टेड़ा हो प्यारा रे॥ 


1- अपणा साहेब जी ने बंगलो बणायो , बणजारा रे ।

ऊपर रखिया झरोखा , झांक्या करो प्यारा रे ॥


2. अपणा साहेब जीने बाग लगायो , बणजारा ।

अरे फूलां भरी है छाबड़ी , पोया करो प्यारारे ॥


3- अपणा साहेबजी ने कुवलो , खणायो बणजारा रे ।

गहरा भरिया नीर वाँ , न्हाया करो प्यारा रे ॥ 


4- कहै कबीर धर्मदास से , बणजारा रे ।

सत अमरापुर पावीया , सौदागिर प्यारा रे ॥


संक्षिप्त भावार्थ - मानव जीवन से इस शरीर के द्वारा हम अच्छे काम व सेवा करलें क्योंकि ये सुन्दर बंगला जीव चेतन के लिए है । इसी में वह मौजूद है जिसमें सुन्दर बगीचा व कुआ है जिसमें अच्छी सोच - समझवज्ञान का निर्मल नीर भरा है । अत : मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगी इसे छोड़ परदेश मत जाना ।


मालवी शब्द -

एकला - अकेला । 

झांक्या - झांकना , देखना , ताकना 

छाबड़ी - छोटी टोकनी 

खणायो - खुदवाना 

सौदागीर - सौदा करने वाला , खरीददार 


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