Header Ads Widget

Ticker

6/recent/ticker-posts

संत दुआरेआया री / sant duware aaya ri

 संत दुआरेआया री 


साखी 


संत हमारी आत्मा , हम संतों की देह । 

संतों में हम यों रमें , ज्यों बादल में मेह।।1 ।। 


संत हमारी आत्मा , हम संतों की श्वाँस । 

संतों में हम योरमें , ज्यों फूलन में बास ॥2 ॥ 


साधु शब्द समुद्र है , जामें रतन भराय । 

मंद भाग्य मिट्टी ओर , कंकर हाथ लगाय।।3 ।।  


भजन 


संत दुआरे आयारी , जोड्या दोनों हाथ , 

जोड्या दोनों हाथ सखी री , करूँ ज्ञान की बात ॥टेक ।। 


1. सतगुरू आया शब्द सुनाया निज मन हो गया हाथ । 

सत् शब्द की सेण बताई , माला जापूँगा दिन रात ॥ 


2. जाके सद्गुरू सदा साथ है , वाको नहीं कोई घात । 

निज भक्ति को बीज रोप्यो , राल्यो संत को खाट । 


3. पांचों चोर पकड़ बस कीन्हा , सतगुरू मारी लात । 

कुकर्मों की जात बनाई , ईश्वर की नहीं जात ॥ 


4. साहेब कबीर मोय समरथ मिल गया नौत जिमायो भात । 

धरमदास पर कृपा कीन्हीं , मिल गया दीनानाथ ॥ 


मालवी शब्द 

सैण - ईशारा , संकेत ।

रोप्यो - लगायो , स्थापितकरना । 

राल्यो  - बिछाना , फैलाना । 

मोय - मुझे 

घात - चोंट, धोका 

नोत - मनुहार , स्वागत , अभिनंदन 

भात - चावल का भोजन 


संक्षिप्त भावार्थ - इस पद में सत्य शब्द रूपी माला जो हर घट में हमेंशा फिरती है उसकी समझ सच्चे सदगुरु द्वारा देने पर पंच विषय रूपी चौर बस में होते हैं या शांत होते हैं ताकि जीवन में कोई घात ना हो जो इन्द्रियों का आहार न होकर आत्मा का आहार है । जिस की कोई जात , परम , मजहब नहीं है ।


आपको भजन अच्छा लगा हो या कोई त्रुटि दिखाई देती हो तो कमेंट करके जरूर बताये और blog को follow जरूर करे और आपको लिखित भजन एवं वीडियो social site पर भी मिल जायेंगे तो आप हमें वहाँ भी follow कर सकते है। 


YOU TUBE    -     भजन वीडियो

FACEBOOK   -     FOLLOW

INSTAGRAM  -    FOLLOW

TELEGRAM    -     JOIN

TELEGRAM  GROUP  -  JOIN

TWITTER       -     FOLLOW

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ