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जो तू आया गगन मंडल से / jo tu aaya gagan mandal se

 ' जो तू आया गगन मंडल से ' 


साखी 


साहेब पारस रूप है , लोहा रूप संसार । 

पारस से स्पर्श भया , लोहा भया टकसार ॥1 ॥ 


साहेब तमारी साहेबी , सब घट रही समाय ।

ज्यों मेहंदी के पात में , लाली लखिन जाय ।।2 ।। 


लाली मेरे लाल की , जित देखू तित लाल । 

लाली देखन में गई , मैं भी हो गई लाल ॥3 ॥  


भजन 


जो तू आया गगन मंडल से , 

शीश दिया फिर डरना भी क्या

होजा होशियार सदा गुरू आगे , 

मन साबित फिर डरना भी क्या ॥


1 .  उनमुन खेती धनीया का सेती , 

रात दिनानर सोता भी क्या

आवेगा पंछी चुग जाएगा खेती , 

तनमन को फुसलाता भी क्या ॥


2 . नौ सो नदियाँ बहे घट भीतर , 

सात समंदर उँड़ा भी क्या ,

गुरूगम होद भर्या घट भीतर ,

 मूरख प्यासा जाता भी क्या । 


3 . जो तेरे घट में नारी सुखमना , 

गणिका के घर जाता भी क्या ,

शीतल वृक्ष की छाया छोड़कर ,

 कंकर पत्थर पे सोता भी क्या । 


4 . काँसां - पीतल सोना न होया , 

पल्ला लगे कोई पारस का ,

चित्त चौपड़ का खेल मड्या है ,

 रंग पहचानों पांचों का ॥ 


5. गुरू गम पांसा हाथ लिया है 

जीति बाजी हारो भी क्या । 

कहै कबीर सुनो भाई साधौ 

करम भरम बिच भूला भी क्या ॥ 


मालवी शब्द -

होशियार - तेवार , सचेत , जागृत 

साबित - पवित्र , साफ , निकालस ।

धनिया के सेती - मुखिया पर आधारित

फुसलाना - किमाना , प्रेरित करना

होद - पानी संग्रह का चौकोरे

उनमून खेती  - उल्छे गीत 


संक्षिष भावार्थ - इस शब्द में कबीर साहब ने सचेत किया है कि गुरु के आगे शब्द या नाद जो  हमेशा तेरे पास प्रत्यक्ष है । मिलजा जुड़जा ताकि तेरी प्यास मिट जाए क्योंकि गुरुगम ( शब्द  बोध ) रूपी होद तेरे अंतर में ही भरा है जिसे बाहर नहीं पा सकेगा । इस शरीर में ही ह्रदय रुपी समुद्र  है जो नौ सौ नदियों से प्रवाहित होकर भरा है । त्रिवेणी के घाट पर शुषुम्ना द्वारा पी ले अर्थात्मानव  जीवनको पाकर सदज्ञान सदराह का राहगीर बन प्रेमव भाईचारे से रह ले । 


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