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घणो रिझायो / ghano rijhayo

' घणो रिझायो '


साखी 

रंगहि से रंग उपजे , सब रंग देख एक । 

कौन रंग है जीव का , ताका करहुं विवेक ॥


भजन 

घणो रिझायो ओ बावरी ने घणो रिझायो री ॥ 

म्हारी सूरत सुहागन नवल बनी साहेब बर पायोजी ॥ टेक ॥ 


1. भटकत - भटकत सब जुग भटक्या , आज को अवसर आयो हेली ।

अबका अवसर चूक जाओगा , नहीं ठिकाणो पायो ॥ 


2. राम नाम का लगन लिखाया सतगुरू ब्याह रचायो हेली । 

सांई सबद लई सामे मिल गया , तोरण बिंद झड़ायो ॥  


3. प्रेम की पीठी सूरत की हल्दी , नाम को तेल चढ़ायो हैली 

पांच सखी मिल मंगल गावे , मोतियां मंडप छायो ॥ 


4. सत्य नाम की चंवरी रचाई पड़लो प्रेम सवायो हैली । 

अविनाशी का जोड्या हथेला , ब्रह्मा लगन लगायो ॥ 


5. रंग महल में सैज पिया की , ओढ़े सूरत सवायो हैली । 

अब म्हारी प्रीत पियासंग लागी , सब संतन मिल पायो ॥ 


6. चौरासी का फेरा फिरकर , परण बिन्द घर आयो । 

कहें कबीर सुणो भई साधु , यो हंस बधावो गायो ॥


मालवी शब्द 

घणो - बहुत, अधिक , ज्यादा । 

लाड़ली - प्यारी , चहेती । 

रिझायो - खुश करना , 

बनडा - दूल्हा 

बनड़ी - दुल्हन 

झडायो - गिराना , पटकना , दूर करना । 

जोड्या - मिलाना 

परण - शादी करके 

बिन्द - दूल्हा 


संक्षिप्त भावार्थ - सदगुरु कबीर ने आध्यात्मिक शादी को शब्द व सूरत के मिलाप या आत्मा परमात्मा के मिलन को लौकिक शादी ( ब्याह ) को निरूपित किया । जिसमें मानव जीवन को पाकर नर से नारायण या आत्मदर्शन द्वारा सर्वमय चेतन सत्ता का बोध इसी शरीररूपी रंगमहल में वह पिया , पिव सद्गुरु मौजूद है जो उसी की सैज है । अतः इस आध्यात्मिक व्याह का संदेश करते हैं । 


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