भजन
टेक- मन तुम भजन करो जग आइ कै ॥
1- दुर्लभ साज मुक्ति की देही
भूले माया पाइ कै ॥ १ ॥
मन तुम भजन करो जग आइ कै ॥
2- लगी हाट सौदा कब करिहौ
का करिहौ घर जाइ कै ॥ २ ॥
मन तुम भजन करो जग आइ कै ॥
3- चतुर चतुर सब सौदा कीन्हा
मूरख मूल गँवाइ कै ॥ ३ ॥
मन तुम भजन करो जग आइ कै ॥
4- कहैं कबीर सुनो भाई साधो
गुरु के चरण चित लाइ कै ॥ ४ ॥
मन तुम भजन करो जग आइ कै ॥
शब्दार्थ – भजन = चुनाव करना , अलग करना । हाट = बाजार , सत्संग ।
भावार्थ – तुम संसार में आये हो , तो भजन करो , अपने आप को सबसे अलग करो , असंग करो । दुखों से छुटकारा पाने की साधना इस दुर्लभ मानव शरीर में ही संभव है । परंतु संसार की वस्तुएं पाकर हम भूल जाते हैं और भजन का काम छोड़कर दुनिया में उलझ जाते हैं । बाजार लगा हो , वहां कोई सौदा खरीदने आया हो ; परंतु वह मोहवश घर लौट जाय और सौदा न करे , तो उसकी नादानी है । इसी प्रकार यह उत्तम मानव चोला पाकर जो सत्संग से स्वरूपज्ञान न प्राप्त कर संसार के मोह में उलझ जाता है , वह धोखा खाता है । चतुर , बुद्धिमान एवं विवेकी वे ही हैं जो संतों की संगत में अपने स्वरूप को समझकर भवबंधनों से अलग होते हैं । मूर्ख वह है जो विवेक रूपी अपनी मूल पूंजी ही गंवा देता है । कबीर साहेब कहते हैं कि हे संतो ! सुनो , सद्गुरु की चरण - भक्ति में चित्त दो । वहां से तुम्हें सत्प्रेरणा मिलेगी ।
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