सतगुरु है मुझ मांही
साखी
1- प्रीतम को पतियां लिखू , जो वह हो परदेश ।
तन में , मन में , नैन में , ताकों कहां संदेश ।
2- आठ पहर चौसठ घड़ी , मेरे मन यहीं संदेश ।
या नगरी प्रीतम बसे , मैं जानू परदेश ।
भजन
टेक- मैं सोऊं सतगुरु थारे मांही सतगुरु हैं मुझ मांही ।
निद्रा न आवे नेडी काम क्रोध सकल भव नांही।।
1 . धरण गिगन बिच कबुयन सोहुं देवूं मुरसन वाली फेरी ।
नाभ द्वादश सूद समाऊं उल्ट बंक दिश घेरी ॥
मैं सोऊं सतगुरु थारे मांही सतगुरु हैं मुझ मांही ।
निद्रा न आवे नेडी काम क्रोध सकल भव नांही।।
2 . दस दरवाजा बंद कर सोऊ चुलकत मुलकत नाही ।
पांचो चोर पगांतले देऊं तीन गुण को गम नांही ।
मैं सोऊं सतगुरु थारे मांही सतगुरु हैं मुझ मांही ।
निद्रा न आवे नेडी काम क्रोध सकल भव नांही।।
3 . मेरूदंड का मारग सीधा सोहंग बंग थरराई ।
भवचर वचन नभ डोरी लागी , सहज इक्कीसों पाई ।
मैं सोऊं सतगुरु थारे मांही सतगुरु हैं मुझ मांही ।
निद्रा न आवे नेडी काम क्रोध सकल भव नांही।।
4 . सोता पीछे कभी नहीं जागू लुट जाओ , लंका भलाई ।
इन्द्र पुरी स्वरग लुट जाओ , धरन गिगन डिग जाई ॥
मैं सोऊं सतगुरु थारे मांही सतगुरु हैं मुझ मांही ।
निद्रा न आवे नेडी काम क्रोध सकल भव नांही।।
5 . वचन गहे जो साधू के ही जनम मरण मिट जाई ।
कहै कबीर किसी को गम नहीं , मेरी गम मुझ मांई ।
मैं सोऊं सतगुरु थारे मांही सतगुरु हैं मुझ मांही ।
निद्रा न आवे नेडी काम क्रोध सकल भव नांही।।
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