1: ।।सत्यनाम।।
।।कबीर अमृत वाणी।।
*आपु जियत लखु आप ठौर करू,*
*मुये कहाँ घर तेरा!*
*यह अवसर नहिं चेतहु प्राणी,*
*अंत कोई नहीं तेरा!*
*कहहिं कबीर सुनों हो संतो,*
*कठिन काल को घेरा!*
*➡️हे बंदे!तू अपना निवेरा आप कर ले, अर्थात अपरोक्ष ज्ञान प्राप्त कर ले।जीते जी अपने आप को अच्छी तरह समझ ले, और जीते जी अपनी स्थिति भी स्थिर कर ले।मरने के बाद तेरा घर कहाँ होगा?हे प्राणी!यदि तुम जीते जी नहीं चेतोगे तो अंत समय में तुम्हारा रक्षक कोई नहीं होगा।कबीर साहेब कहते हैं कि, हे संतों!सुनों काल का आक्रमण बड़ा जबरदस्त होता है।*
।।कबीर अमृत वाणी।।
मन दाता मन लालची,
मन राजा मन रंक ।
जो यह मन गुरू सों मिलै,
तो गुरू मिले निसंक ।।
टीका:--सद्गुरू कबीर साहेब जी कहतेे हैं कि यह मन ही शुद्धि-अशुद्धि भेद से दाता लालची,उदार कंजूस बनता है ।
यदि यह मन निष्कपट गुरू से मिले तो उसे निस्संदेह गुरु- पद मिल जाय ।।
सत साहेब बंदगी साहेब

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