1: ।।सत्यनाम।।
।।कबीर बीजक साखी।।
बहुत दिवस ते हिन्डिया,
सूत्र समाधि लगाय।
करहा पड़ा गाड़ में ,
दूरि परा पछिताय ।।
टीका:--हठ- योगी बहुत दिनो से शुन्य गगन-मण्डल में जड़ समाधि लगा कर भटक रहे हैं;परन्तु निजानन्द की प्राप्ति नहीं होती हैं।
और अन्त में खाली हाथ रह जाने के कारण वे इस तरह पछताते हैं कि,जिस तरह गहरे गड़ढे में दुर जाकर पड़ा हुआ खरगोश पछताता है ।
भवार्थ--हठ योगी साक्षात् राम को नहीं भजते हैं अतएव (शुन्य में समाधि लगाते हुए)अन्त में पछ ताते है ।
गगन मण्डल में डारि दुलैया,योगी तारी लावे ।
सो सुमेर की खाख उडैगी,कच्चा योग कमावे।।
2: माया करक कदीम है,
या भौसागर के माँहि ।
जंबुक रूपी जीव है,
खैचत ही मर जांहि ।।
सदगुरु कबीर साहेब
यह संसारिक माया सदा से लोकलुभावन है । जिसे हम सब कुछ मांन कर चल रहे वही हमारी भूल है । वास्तविकता यही है वह केवल अस्थि पंजर है । जिसे पाने की लालसा में यह सियार रूपी जीव उस कंकाल को चूसना चाहती है और अन्तोगत्वा वह मर जाती है ।
भाव यह है कि अस्थायी में स्थायित्व खोज कर महज मृगतृष्णा है ।
सत साहेब बंदगी साहेब
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