"खरी कसौटी राम की खोटा टिके ना कोय ।
राम कसौटी सो टिके जो जीवत मृतक होय ।।
सतगुरु कबीर
एक बार एक शिष्य ने अपने गुरुजी से पुछा गुरुजी अमर कैसे हुवा जा सकता है तो गुरुजी ने उसे एक कच्चा नारियल दिया और कहा ऐसा है इस नारियल के अन्दर एक नारियल गिरी रुप मे है उस अन्दर के नारियल की गिरी को साबूत निकाल ला तो थोड़ी देर मे शिष्य अन्दर के नारियल के टुकड़े टुकड़े करके ले आया फिर गुरुजी ने एक पका नारियल दिया और कहा अब इसके अन्दर के गिरी वाले नारियल को निकाल ला तो शिष्य उस अन्दर वाले नारियल की गिरी को साबूत निकाल लाया तो गुरुजी ने कहा आया कुछ समझ मे पहले नारियल कच्चा था जो साबूत बच न सका और दुसरा नारियल पक चुका था और साबूत निकल आया ठीक इसी प्रकार हमारा शरीर का सिस्टम है एक हमारा स्थूल शरीर है जो बाहरी नारियल है जो समय के साथ बाहरी नारियल की तरह बेकार की वस्तु बन जाता है और इस शरीर के अन्दर एक सुक्ष्म शरीर उस भीतरी नारियल की तरह है उसी का मूल्य है लेकिन इस भीतरी नारियल को पाने के लिये शरीर के माध्यम से अन्तर्मुखी होकर साधना करनी होती है तभी इस भीतरी सुक्ष्मस्वरुपी नारियल का पता लगाना सम्भव होता है बिना अन्तर्मुखी साधना के इस सुक्ष्म स्वरुपी शरीर जिसे हम आत्मा कहते है कि पहचान नही हो पाती है और जीव अन्तर्मुखी साधना के बैगर चाहे उसने पुरी उम्र जय गुरु देब के नारे लगाये हो चाहे उसने सारी उम्र परमात्मा के मन्दिरो मे घन्टिया बजाई हो चाहे उसने मन्दिरो मे सारी उम्र धूप बत्ती जलाई हो चाहे उसने सारी उम्र ब्रत उपवास किये हो चाहे उसने सारी उम्र जय जय कबीर जी कहा हो चाहे उसने सारी उम्र सतनाम सतनाम की रटन्त ही क्यौ न लगाई हो , चाहे उसने सारी उम्र हरे राम राम हरे राम क कहा हो या सारी उम्र वेद कितेबो का पाठ किया हो लेकिन इस सब के बावजूद जीव ताउम्र कच्चे नारियल की तरह ही बना रहता है मृत्यु के समय उसका जीवन कच्चे नारियल की भाति ही बिखर जाता है जो किसी भी काम का नही रह जाता है । अदरणीय साधक जनो एंव भक्तजनो यह जीवन का परम सत्य है और यही जन्म और मृत्यु का कारण है यही लख चौरासी का कारण है जो जीव साधना के द्धारा अपने अपने आत्म स्वरुप को उपलब्ध हो जाता है वह मोक्ष का भागी हो जाता है और जो ताउम्र बाहरी कृत्यौ मे हरे रामा हरे कृष्णा राम राम हरे मे उलझा रहता है वह अपने जीवन की अमूल्य धरोहर को खो देता है और जब तक वह परमात्मा की इस अमूल्य धरोहर जो कि आत्मस्वरुप रुप मे उसके अन्दर ही विद्यमान है को नही पा लेता तब तक वह जीवन और मरण के चक्कर से नही छुट सकता और नाना प्रकार के जीव जन्तुओ मे उसका जन्म और मरण होता है ।
परमसद्धगुरु कबीर साहेब भक्ति मार्ग मे निर्वाण को इस विधि से उपलब्ध करवाने वाले एकमात्र सर्वप्रथम एकमात्र सद्धगुरु है कबीर साहेब से पहले इस अन्तर्मुखी भक्ति की साधना को कोई भी नही जान सका यह बात दिगर है कि आज के समय मे कबीर पन्थ मे उनके लाखो अनुयायी है जिसमे गुरु भी है सन्त भी है साधू भी है और साधक भी है लेकिन उनके इन लाखो अनुयायियो मै 1%को छोड़कर 99% एक ही थैले के चट्टे-बट्टे है परम सद्धगुरु कबीर साहेब के अधिकत्तर अनुयायियो को बाहरी कृत्यौ और कर्म-काण्डौ मै अन्य धार्मिक समप्रदायो की तरह ही मगसूल पाया जाता है इसे किसका दुर्भाग्य कहना चाहिये कायदे के हिबाब से यह उन भक्तजनो का ही दुर्भाग्य है क्यौकि अगर आप कबीर साहेब की बात को समझने की कोशिश नही करगे या समझना ही नही चाहते तो तुम्हारे इन कृत्यौ का दण्ड को कबीर साहेब तो भोगने आयगे नही भोगेगा तो वही जो नादानी करेगा यही ब्रहामण्ड का नियम है ।
तो खरी कसौटी राम की खोटा टिके ना कोय । खरा कौन है जो अपने को ही कसौटी पर कसना शुरु कर देता है जो अपने को अन्तर्मुखी होकर ध्यान साधना मै सतगुरु की भक्ति मे लीन होने लगता है और खोटा कौन है जो अपनी बला को दुसरे के सिर पर डाल देता है जैसे तुम अपने को लगाओ मुक्त किसको होना है ?जवाब है आपको ।दुखो से निजात किसे पाना ?इसका भी जवाब है आपको । अब मुक्ति चाहिये आपको लेकिन मुक्ति करेगा कौन कबीर साहेब दु:खो से छुटकारा चाहिये आपको लेकिन दिलायेगा कौन कबीर साहेब सवाल ये है जब कबीर साहेब को मुक्ति चाहिये ही नही जब कबीर साहेब को अपना कोई दु:ख है ही नही तो तुम्हारे साथ क्या कबीर साहेब ने एग्रीमैन्ट कर रक्खा है क्या ? कि तुम गलत पर गलत किये जावो और वो तुम्हारे दु:खो का बोझ ढोते रहे तुम कैसे शिष्य हो उनके शिष्य का उत्तरादायित्व होता हे कि वह गुरु का भार अपने सिर पर ले और गुरु को निर्भार करे ।आपने देखा होगा जब गोरखनाथ जी गुरु रामानन्द की पगड़ी उतारने पर उतारु थे तब कबीर साहेबजी ने गोरखनाथजी से कहा था कि गुरु से बाद मे निपटना पहले चेले से तो निपट लो । जब गोरखनाथ का बस नही चला तो अन्त मे उन्हौने कहा था ।
नौ नाथ चौरासी सिद्ध इनका अनहद ज्ञान।
अविचल घर कबीर का यह तो बिरला जान ।।
अब यहा पर एक बात यह भी विशेष रुप से जान लेना " कबीर " उस अखन्ड चेतन्यस्वरु आत्मा का नाम है जो इस ब्रहामण्ड के रोम रोम मे चराचर रुप मे व्यापत है । और उस अखन्डित चैतन्यस्वरुप आत्मा के लिये कहा जाता है ।
विभु व्यापकम ,शुद्ध धीर गम्भीरम ,
सदा शिव रुप प्रकाशम निरीहम ।।
अमोलियम अडोलियम अशौचियम प्रणामि ।
जपेहं भजेहं कबीरं नमामी ।।
गुरु रामानन्द जी ने कबीर साहेब जैसै शिष्य को पाकर अपने को धन्य मान लिया था कितने गुरु हुये वक्त ने सबको मिटा दिया लेकिन गुरु रामानन्द अगर आज भी याद किये जाते है तो सिर्फ दो शिष्यौ की बदौलत उसमे से एक कबीर साहेब और दुसरे सन्त रै दास जी तो ऐसे होते है गुरु के शिष्य कबीर साहेब ने तो ऐसा कभी नही कहा कि हमारे गुरुजी हमे मुक्ति देगे कबीर साहेब ने तो कभी नही कहा हमारे गुरुजी हमे दु:खो से छुटकारा दिलायगे फिर तुम क्यौ कहते हो कि कबीरजी मोक्ष दिलायगे कबीरजी दु:खो से छुटकारा दिलायेगा जिन लोगो ने अभी तक कबीर साहेब की ये अमूल्य शब्द नही पढ़ै है वो जरा इन शब्दौ को सुन ले ।
जो तु मुझको चाहे मत राखै कुछ आश ।।
मुझ सरीखा होय रहे सब कुछ तेरे पास ।।
यह बात उन्हौने होने वाले सन्तो ,अपने होने वाले साधूओ और अपने होने वाले साधको सबसे कही है इस बात से उनका कोई भी भक्त अछुता नही है फिर तुम बार-बार उनके पीछे हाथ धोकर क्यौ पड़े हो ? क्यौकि ये सब खोटे सिक्को की पहचान है क्यौकि तुम अपने आपको कसौटी पर कसने से डरते हो और अपनी बला को कबीर साहेब के उपर डाल देते हो राम कसौटी पर तो खरा वही उतरता है जो अपने को चड़ाने को तैयार हो जाता है लेकीन तुम अपने को चड़ाने को तैयार नही हो तुम अपने बदले मे केला नारियल बर्फी पान सुपारी चड़ा आते हो तो मुक्ति भी केला नारियल को ही मिलेगी तुम्है नही ।
सप्रेम साहेब बंदगी साहेब
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